उत्तर प्रदेश माध्यमिक संस्क्रत शिक्षा परिषद, लखनऊ एवं संपूर्णानंद संस्क्रत विश्वविद्यालय, वाराणसी से सम्बद्ध

+91 975 930 9261

प्रबंधक का संदेश

वर्ष 1969 में जब इस विद्यालय की स्थापना हुयी तो यह गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्र के छात्रों को स्वावलम्बी बनाने का एक दूरदर्शी और अग्रणी प्रयास था, इतिहास मे यह विद्यालय लगभग 53 साल पुराना है। और इस अवधि के दौरान हमने काफी विकास किया है। जिसमे संस्था को माध्यमिक से महाविद्यालय एवं माध्यमिक दोनों का दर्जा मिला है हालांकि इस अर्धशताब्दी वर्ष मे हमे यह कहते हुए गर्व हो रहा है, कि संस्थापक पिताओं की मूल द्रष्टि के प्रति हमारी द्रढ प्रतिबद्धता निरंतर बनी हुयी है।

हमारा उद्देश्य यह है कि जब कोई छात्र अंततः हमरी संस्था से बाहर चला जाये, तो उसे न केवल अपने विषयों को जानना चाहिये, बल्कि पूर्ण व्यक्तित्व और मूल्यों का भी बोध होना चाहिये। यदि हमारे पूर्व छात्रों की एक बडी संख्या की उपलब्धियां कोई संकेत देती है, तो हम गर्व से कह सकते हैं कि हम अपने उद्देश्य को पूरा करने मे काफी हद तक सफल हुये हैं।

हम अपने नवीन प्रवेशित छात्रों का स्वागत करते है और उनके लिये खुशी और अच्छे स्वास्थय की कामना करते है। हम विश्वास दिलाते है कि विद्यालय प्रबंधन उन्हें एसा वातावरण प्रदान करने के लिये हमेशा तत्पर रहेगा जिससे कि उन्हे अपने व्यक्तिगत लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये सशक्त बनाने मे मदद करेगा।

about
इन्द्रेश नारायण तिवारी

प्रधानाचार्य का संदेश

विद्यालय परिवार सभी नवप्रेशित छात्रों का स्वागत एवंअभिनन्दन करता है। 'शिक्ष' धातु से शिक्षा शब्द बना है, जिसका अर्थ है विधा ग्रहण करना। शिक्षा का उद्देश्य संक्षेप मे विद्यार्थी को पूर्ण मानव बनाना है। पूर्ण मानवता का अर्थ है मानव मे भौतिक और आध्यात्मिकवाद का पूर्ण समबन्ध, सामंजस्य और संतुलन। आध्यात्मिकता के अभाव या असंतुलन से मानव दानव होता जाता है। और वह समाज के लिये आतंकप्रद बन जाता है। जिससे सामाजिक व्यवस्था अस्त - व्यस्त हो जाती है। वस्तुतः शिक्षा संस्कार की एक प्रक्रिया है। आधुनिक शिक्षा प्रणाली मे संस्कार शिद्धांत की ओर अपेक्षा की जा रही है। शिक्षा प्रणाली को ज्ञान व बुद्धि के साथ नैतिक चरित्र एवं सांस्क्रतिक व्यक्तित्व विकास परक होना चाहिये।

बच्चे उर्वर भूमि पर लहलहाती फसलों के समान है। जिस पर किसी भी राष्ट्र की आधारशिला निर्धारित होती है। राष्ट्र के भविष्य की बुनियाद बच्चे ही तो होते है। इन बच्चों को भविष्य की लम्बी राह तय करनी है। तथा राष्ट्र के सफलता के मार्ग पर ले जाना है।

किसी राष्ट्र के भविष्य को आकार देने का प्रथम उत्तरदायित्व तीन लोगो पर होता है माता, पिता और शिक्षक। इनमे से शिक्षक सबसे महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है। चूँकि शिक्षक इस कार्य मे विशेष तौर पर प्रशिक्षित तथा चयनित होते है, और अपनी क्षमतानुरुप इस कर्तव्य को निभाते है। एक शिक्षिक विद्यार्थियों, अभिभावकों तथा समाज में विश्वास का पात्र होता है, और इसी विश्वास को पूरी सत्यनिष्ठा के साथ निभाना उसका धर्म होता है। शिक्षक अपने विद्यार्थियों को एक मूर्ती की तरह गढता है।

गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढि गढि काढैं खोट।
अंतर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट।।
अर्थात गुरु और शिष्य का रिश्ता एक कच्चे घडे के समान होता है, जिस प्रकार कुम्हार घडे पर अन्दर से हाँथ रखकर बाहर से चोट मारता है, ताकि वह टूटे न और मजबूती मे बदल जाये। ठीक उसी प्रकार शिक्षक भी क्षात्रों के उज्जवल भविष्य की रुपरेखा तय करते है, तथा उनके लिये नई संभावनायें पैदा करते है।

about
गौरव गुप्ता